प्रो. जवाहर लाल शर्मा
विभागाध्यक्ष
प्रोफेसर, सर्व दर्शन विभाग
01.05.2025 से 30.04.2027
सर्वदर्शन दर्शनशास्त्र का सर्वाधिक अध्ययन कराने वाला शास्त्र है। दर्शन का लक्ष्य निःश्रेयस् की प्राप्ति है। व्यक्ति का परम-लक्ष्य भौतिक भी हो सकता है, आध्यात्मिक भी। दर्शनशास्त्र दोनों मार्गों का औचित्य बतलाते हुए कर्तव्याकर्तव्य, शुभाशुभ का दिशाबोध कराता है । अतः व्यक्ति के भौतिक एवं आध्यात्मिक विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है ।
भारतीय दर्शन का आरम्भ वेदों से होता है, इसका उत्कर्ष उपनिषदों में मिलता है । कालान्तर में यथार्थ तत्त्व को अलग-अलग विश्लेषण के आधार पर समझाने की प्रक्रिया में सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा, वेदान्त- इन षड्दर्शनों का एवं चार्वाक, जैन, बौद्ध, शैवादि दर्शन का अभ्युदय हुआ । इन सभी दर्शनों ने अपने-अपने विचारों को सूत्र-शैली में प्रस्तुत किया, जो तत्तत् दर्शनों के सूत्र-ग्रन्थों के नाम, जैसे- साघ्ख्यसूत्र, योगसूत्र, न्यायसूत्र, मीमांसासूत्र आदि से प्रसिद्ध हैं । सर्वदर्शन विषय में इन सभी दर्शनों का अध्ययन उनके आधारभूत सूत्रग्रन्थों एवं भाष्यग्रन्थों के माध्यम से करवाया जाता है । साथ ही समकालीन-दर्शन एवं पाश्चात्य दर्शन का संक्षिप्त-ज्ञान भी दिया जाता है।