प्रो. मार्कंडेय नाथ तिवारी
विभागाध्यक्ष
प्रोफेसर, सांख्य योग विभाग
02.07.2021 से 01.07.2024
साघ्ख्य-योग का अध्ययन करने वाले छात्र प्रमुख रूप से साघ्ख्य दर्शन एवं योग-दर्शन के अधारभूत ग्रन्थों का अध्ययन करते हैं। साघ्ख्य-दर्शन का प्रथम ग्रन्थ महर्षि कपिल के द्वारा प्रणीत साघ्ख्य-सूत्र है। प्रसिद्ध आचार्य ईश्वरकृष्ण द्वारा रचित साघ्ख्यकारिका इस दर्शन का अत्यन्त प्रामाणिक ग्रन्थ है। इस दर्शन में कुछ पदार्थ प्रकृति है, कुछ प्रकृति एवं विकृति है, कुछ मात्र विकृति हैं, तो कुछ न प्रकृति हैं और न ही विकृति। इस प्रकार साघ्ख्यदर्शन में स्वीकृत सभी पच्चीस पदार्थों को चार वर्गाे में बॉटा गया है।
कपिल द्वारा प्रणीत साघ्ख्यदर्शन में ईश्वर की सत्ता न होने से इसे निरीश्वर साघ्ख्य कहते है। इस दर्शन में प्रकृति, महत्तत्त्व, अहघड्ढार, पॉच ज्ञानेन्द्रियॉ (घ्राण-रसना-चक्षु-त्वक्-श्रोत्र), पॉच कर्मेन्द्रियॉ (वाक्-पाणि-पाद-वायु-उपस्थ) मन, पॉच तन्मात्रएॅ (गन्धतन्मात्र-रसतन्मात्र-रूपतन्मात्र-स्पर्शतन्मात्र-
शब्दतन्मात्र) एवं पॉच महाभूत (पृथ्वी-जल-तेज-वायु-आकाश) एवं पुरुष इस प्रकार कुल पच्चीस पदार्थ माने गये हैं। इन्हीं पदार्थो का अध्ययन इस दर्शन में कराया जाता है। योग-दर्शन का प्रथम ग्रन्थ महर्षि पत×जलि द्वारा प्रणीत ‘योग-सूत्र’ है। इस ग्रन्थ को पात×जल योगदर्शन के नाम से भी जाना जाता है। इस योग-दर्शन में साघ्ख्य दर्शन के ही सभी पच्चीस पदार्थ माने गये हैं, केवल पुरुष-विशेष केे रूप में एक ईश्वर नाम का पदार्थ यहॉ अतिरिक्त स्वीकार किया गया है। इसीलिएये योगदर्शन को सेश्वर साघ्ख्यदर्शन भी कहा जाता है। इस दर्शन में मनुष्य की चित्त-वृत्तियों का निरोध कैसे सम्भव है, यह विस्तार से बताया जाता है। प्रसघõ से यहॉ योगासनों एवं विभिन्न प्रकार की सिद्धियों का भी रमणीय विवेचन प्राप्त होता है। आज सम्पूर्ण विश्व का मानव योग के द्वारा अपने शरीर को स्वस्थ एवं दीर्घजीवी बनाने के लिये इस दर्शन का अध्ययन कर रहा है। ‘नास्ति साघ्ख्यसमं शास्त्रं, नास्ति योगसमं बलम्’ यह भारतीय मान्यता साघ्ख्य-योग के अप्रतिम महत्त्व को ही प्रदर्शित करती है।