प्रो. ए. एस. अरवमुदन
विभागाध्यक्ष
प्रोफेसर, मीमांसा विभाग
18.09.2022 से 17.09.2025
‘पूजितविचारवचनो मीमांसाशब्दः’ मीमांसा शब्द का अर्थ पूजित विचार होता है। ‘‘कर्मेति मीमांसकाः’’ इस वचन के अनुसार मीमांसा में कर्म को ही ईश्वर माना गया है। मीमांसा का प्रथम ग्रन्थ ‘जैमिनि-सूत्र’ है इसे द्वादशलक्षणी नाम से भी जाना जाता है। इस दर्शन में द्वादश अध्याय हैं। इस मीमांसा दर्शन के प्रर्वतक महर्षि जैमिनि हैं। धर्म का क्या लक्षण है एवं धर्म में क्या प्रमाण है? यही समझाने के लिये इस ग्रन्थ की रचना हुर्ह है। इसलिये इस दर्शन का प्रथम सूत्र- ‘अथातो धर्मजिज्ञासा’ (जै-सू-1/1/1) है। इस शास्त्र में अनेक अधिकरण हैं, जिनके आधार पर धर्म या मानव-कर्तव्य याग आदि का विचार होता है। अधिकरण में पॉच अवयव या भाग होते- विषय, संशय, पूर्वपक्ष, सिद्धान्त एवं संगति। उपर्युक्त विषयों में यह विभाग दक्षता प्रदान करता है।