जैन दर्शन विभाग


Veer Sagar Jain
प्रो. वीर सागर जैन
विभागाध्यक्ष
प्रोफेसर, जैन दर्शन विभाग
14.09.2023 से 13.09.2026

स्थापना वर्ष -1970

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जैन दर्शन विभाग : एक परिचय

जैन धर्म भारत का एक अत्यन्त प्राचीन धर्म - दर्शन है। प्राचीन काल में यह ‘श्रमण’ धर्म के नाम से जाना जाता था। जैन धर्म की प्राचीनता भारतीय सभ्यता के प्रागैतिहासिक काल तक प्राप्त होती है। भारतीय साहित्य के सबसे प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद और अथर्ववेद में ‘व्रात्य’ और ‘अर्हतों’ का वर्णन आता है, जिन्हें उपनिषदों में ‘श्रमण’ कहा जाता है। जैन तीर्थंकर जैसे ऋषभदेव, अजितनाथ और अरिष्टनेमि का भी वर्णन हमें इनसे प्राप्त होता है। भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति और विश्वप्रसिद्ध दार्शनिक डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन् ने लिखा है -

'इस बात के सबूत प्राप्त होते हैं कि पहली शताब्दी ई० पू० में लोग ऋषभदेव का पूजन करते थे। इसमें कोई संदेह नहीं कि जैन धर्म वर्धमान या पार्श्वनाथ से भी पहले काफी प्रबल था। यजुर्वेद में 3 तीर्थंकरों का नाम आता है - ऋषभदेव, अजितनाथ और अरिष्टनेमि। भागवतपुराण इसका समर्थन करता है कि ऋषभदेव जैन धर्म के प्रवर्तक थे।' (भारतीय दर्शन, भाग 1, पृष्ठ 288)

वैदिक काल से पूर्व व्रात्य परंपरा के प्रमाण प्राप्त होते हैं, अतः जैन धर्म विश्व का प्राचीनतम धर्म है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा सभ्यता में ध्यान-मग्न योगियों की प्रतिमाएं मिली हैं जो दर्शाती हैं कि भारतीय सभ्यता में ध्यान योग बहुत ही प्राचीन है। उन दिनों जैन धर्म को ' व्रात्य धर्म' 'अर्हत धर्म' और 'निर्ग्रन्थ धर्म' के नाम से जाना जाता था। जैन साहित्य के अलावा वैदिक पुराणों में भी उल्लेख प्राप्त होता है कि हमारे देश का नाम 'भारतवर्ष' जैन तीर्थंकर ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र 'भरत' के नाम पर ‘भारत’ पड़ा। ऋषभदेव के बाद क्रमशः 23 तीर्थंकर और हुए हैं जिनमें अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर ने अपने समय में जैन धर्म-दर्शन को पूरे विश्व में फैलाया।

24 वें तीर्थंकर महावीर विशाल व्यक्तित्व के धनी थे जिन्होंने जीवो को आध्यात्मिक उन्नति, जीव मात्र का कल्याण, शांति और धर्मनिरपेक्षता की तार्किक शिक्षा दी। तीर्थंकर महावीर की शिक्षाएं आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण और प्रभावशाली हैं जितनी 2600 साल पहले थी| उन्होंने मुख्य रूप से अहिंसा, अनेकांतवाद और अपरिग्रह का सिद्धांत प्रस्तुत किया। उन्होंने हमेशा अपनी शिक्षा में स्वयं सत्य की खोज पर बल दिया। उन्होंने सिखाया कि हमें सत्य के सभी पहलुओं को देखना चाहिए।

देश विदेश में जैनदर्शन का अध्ययन

भारत में अनेक विश्वविद्यालयों में जैसे संपूर्णानन्दविश्वविद्यालय, मद्रासविश्वविद्यालय, मैसूरविश्वविद्यालय, राजस्थानविश्वविद्यालय, राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान, जयपुरपरिसर, भोपालपरिसर, मोहनलालसुखाडियाविश्वविद्यालय, जैनविश्वभारतीविश्वविद्यालय में जैनदर्शन का अध्ययन होता है| विदेश में भी जैसे लन्दनविश्वविद्यालय, मास्कोविश्वविद्यालय, जर्मनीविश्वविद्यालय, अमरीकाविश्वविद्यालय, यूरोपविश्वविद्यालय जैनदर्शन का अध्ययन होता है|

जैन साहित्य

जैन दर्शन के हजारों प्राचीन ग्रंथ अलग-अलग भाषाओं में उपलब्ध होते हैं जैसे प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, तमिल, कन्नड़, प्राचीन हिंदी, गुजराती, राजस्थानी, मराठी आदि। जैनधर्म के मूल उपदेश प्राकृत भाषा में है जिन्हें 'प्राकृत आगम' कहा जाता है। ऐसा कोई विषय नहीं है जिसे जैन आचार्य, जैन साधु और जैन शोधार्थियों ने लिखा ना हो। उनके अवदानों में दर्शन, तर्क, इतिहास, जीव-विज्ञान, धातु-विज्ञान, व्याकरण, साहित्य, छंद-शास्त्र, कला, सौंदर्य-शास्त्र, नाट्य, संगीत, वास्तु-शास्त्र, मूर्तिकला, आयुर्वेद, शरीर-क्रिया-विज्ञान, मनोविज्ञान, राजनीति, शब्दकोश, विश्वकोश, काव्य, कथाएं आदि सम्मिलित हैं।

आधुनिक युग में चिंतकों ने आधुनिक साहित्य भी प्रचुर मात्रा में लिखे हैं। वह साहित्य जर्मन, हिंदी, अंग्रेजी, रूसी आदि अनेक भाषाओं में है। उनमें से अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जैन दर्शन का प्रथम संस्कृत-सूत्र- ग्रंथ 'तत्त्वार्थसूत्र' है जो आचार्य उमास्वामी द्वारा प्रथम शताब्दी में लिखा गया था, जिस पर अनेक टीकाएं उपलब्ध हैं। जैन दर्शन विभाग में हम युवाओं को संस्कृत और प्राकृत के मूल ग्रंथों का अध्ययन करवाते हैं।

पूर्णकालिक पाठ्यक्रम

  1. शास्त्री (B. A.) त्रिवर्षीय स्नातक जैन दर्शन कोर्स
  2. आचार्य (M. A.) द्विवर्षीय स्नातकोत्तर जनदर्शन कोर्स
  3. विशिष्टाचार्य (M. Phill) स्नातकोत्तर-पश्चात एकवर्षीय शोधपाठ्यकर्म
  4. विद्यावारिधि (Ph.d) न्यूनतम 3 वर्षीय शोध कार्य

अंशकालिक पाठ्यक्रम

  1. षाणमासिक जैन विद्या सर्टिफिकेट कोर्स
  2. एकवर्षीय जैन विद्या डिप्लोमा
  3. द्विवर्षीय एडवांस डिप्लोमा (प्रस्तावित)

अन्य गतिविधियां

  1. राष्ट्रीय संगोष्ठियों/ सेमिनार का आयोजन
  2. विविध कार्यशालाओं का आयोजन
  3. राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय विद्वानों के विशेष व्याख्यान
  4. मासिक छात्र संगोष्ठी/संवाद का आयोजन
  5. NET/JRF/B.ed/CTET आदि प्रतियोगी परीक्षा का प्रशिक्षण
  6. लेखन और भाषण कौशल का प्रशिक्षण
  7. सभी लोगों के लिए स्वाध्याय कक्षा का आयोजन

अध्ययन सामग्री / संदर्भ

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संकाय विवरण

faculty
क्रमांक फ़ोटो नाम विभाग पद
1 वीर सागर जैन प्रो. वीर सागर जैन जैन दर्शन विभाग प्रोफेसर
2 अनेकांत कुमार जैन प्रो. अनेकांत कुमार जैन जैन दर्शन विभाग प्रोफेसर
3 कुलदीप कुमार प्रो. कुलदीप कुमार जैन दर्शन विभाग प्रोफेसर