Prof. Brundaban Dash
विभागाध्यक्ष
प्रोफेसर, पौरोहित्य विभाग
21.01.2022 से 20.01.2025
‘‘वयं राष्ट्रे जागृृयाम पुरोहिताः’’ इस वैदिक वचन के अनुसार श्रौत एवं स्मात्र्त संबंध्ी क्रियाओं के अनुष्ठान ज्ञान को पौरोहित्य कहते हैं। ‘‘अग्निमीडे पुरोहितम्’’ इस वेद मन्त्रा से पुरोहित की महत्ता सभी प्रकार के अनुष्ठान के साध्क के रूप में है। आचार्य यास्क ने अध्वर्यु शब्द के व्युत्पत्ति परक अर्थ का प्रतिपादन करते हुये बतलाया है कि अहिंसात्मक यज्ञ का सम्पादन मानव कल्याण के लिये कल्पित है। पहले जो यजमान के हित का साध्न करता है, उसको पुरोहित कहते हैं अथवा मण्डल या जनपद के हित का साध्क पुरोहित है तथा जिस कर्म से यह कार्य सम्पादित किया जाता है उसे पौरोहित्य कहते हैं। यजुर्वेद में भी पुरोहित से संबंध्ति यह मन्त्रा मिलता है-
सं शितम्मे ब्रह्म संशितँ वीर्यम्बलम्।
सं शितघ्क्षत्रा×िजष्णु यस्याहमस्मि पुरोहितः।।
प्राचीन काल से अद्यावध् ियज्ञानुष्ठानादि कार्य पुरोहित से ही सम्पादित किये जाते रहे हैं। वेद प्रतिपादित ज्ञानकाण्ड, कर्मकाण्ड एवं उपासना काण्डों में पौरोहित्य विभाग में कर्मकाण्ड एवं उपासना काण्ड के अध्ययन एवं अध्यापन की विपुलता दिखती है।
पौरोहित्य कर्मसम्पादन से मानव शरीर शु(, सुसंस्कृत एवं परिमार्जित होता है। संस्कारों का प्रभाव जन्म जन्मान्तर दिग् दिगन्त पफैला हुआ है। शास्त्राप्रतिपादित संस्कारों के अनुष्ठान से मानव शरीर परम पवित्रा एवं कल्मष रहित होता है। वर्तमान समय में अज्ञान वश संस्कारों का व्यवहार समाज में सम्यक् प्रकार से नहीं दिखता है। इस कारण समाज के कल्याण के लिये गर्भाधनादि संस्कारों के ज्ञान की पूर्णता हेतु पौरोहित्य विभाग अहर्निश प्रयाश रत है। गर्भाधन, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, अन्नप्राशन, कर्णबेध्, मुण्डन, उपनयन एवं विवाहादि संस्कारों में मुख्य आध्यात्मिक कर्म पौरोहित्य के द्वारा सम्पादित किये जाते हैं। इसके अतिरिक्त श्रा(, व्रत, प्रायश्चित्त, शान्ति, प्रतिष्ठा, उत्सर्गादि क्रियाओं के विविध् सोपान पौरोहित्य विभाग के द्वारा अध्ययन, अध्यापन एवं प्रायोगिक के रूप में सम्पादित किये जाते हैं।
पर्यावरण शु(यर्थ वृक्षादि रोपण विध्यिाँ, वापी, कूप तड़ागों की प्रतिष्ठा एवं उनके उत्सर्ग की विध्यिाँ इस विभाग में पढ़ाई जाती हैं। सभी कार्यों का सम्पादन पुण्य काल से होता है, इसलिये काल निर्णय रूप मुहूत्र्तादि ज्ञान भी सम्यक् रूप से इस विभाग से किया जाता है।
अध्कि क्या कहना सनातन परम्परा में सभी कर्म इस पौरोहित्य विद्या से ही साध्ति होते हैं। पौरोहित्य विद्या का ज्ञान जन-जन तक पहुचानें के उद्देश्य से अंशकालिक पाठ्यक्रम के रूप में षाण्मासिक पौरोहित्य प्रशिक्षण एवं पौरोहित्य डिप्लोमा पाठ्यक्रम भी इस विभाग द्वारा स×चालित किये जाते हैं।
अतः सभी सनातन ध्र्मोपासकों को पौरोहित्य शास्त्रा का अध्ययन अवश्य करना चाहिये।