श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय ने 10वें अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर कार्यक्रम आयोजित किया।
आज दिनांक 21 जून 2024 को श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली ने 10वां अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस बड़े उत्साह और समर्पण के साथ आयोजित किया । इस वर्ष की थीम " स्वयं और समाज के लिए योग” जिसका उद्देश्य योग के व्यक्तिगत और सामूहिक लाभों को प्रकट करना था।
इस कार्यक्रम में 300 से अधिक शिक्षकों, गैर-शिक्षण कर्मचारियों और छात्रों की प्रभावशाली उपस्थिति रही। प्रतिभागियों ने योग प्रोटोकॉल सत्र में भाग लिया, जिसमें विभिन्न योगासनों और ध्यान अभ्यासों को शामिल किया गया, और एकता और कल्याण की भावना को अपनाया।
योग प्रोटोकॉल सत्र के बाद मुख्य वक्ता श्री अश्विनी उपाध्याय, वरिष्ठ अधिवक्ता, उच्चतम न्यायालय, दिल्ली ने एक विशेष व्याख्यान दिया। श्री अश्विनी उपाध्याय जी ने कहा जिन देशों में योगाभ्यास अधिक है उन देशों में शांति है, लोग स्वस्थ एवं खुशहाल हैं साथ ही जिन देशों में योगाभ्यास नहीं है वहां लोग मानसिक रूप से कमजोर एवं उनमें क्रोध अधिक है। योग सभी प्राणियों के लिए है अतः कारावास में रह रहे लोगों को भी नियमित रूप से योगाभ्यास करना अत्यावश्यक है, जिससे उनका मन स्थिर, शांत और तनावमुक्त हो और जब वे कारावास से निकलें तो एक नए खुशहाल जीवन को अपनाएं, पुनः समाज को दूषित न करें। जितना अधिक लोग योगाभ्यास करेंगे उतना लम्बा जीवन निरोगी रहते हुए जियेंगे, जिससे स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च को भी काम किया जा सकेगा। हमें युद्ध स्तर पर आयुर्वेद, योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध, सोवा रिग्पा और होम्योपैथी पर कार्य करने की आवश्यकता है। उन्होंने आगे कहा विश्वभर में योगाभ्यास किया जाना चाहिए और मुख्य रूप से महिलाओं को इसमें बढ़चढ़ कर प्रतिभागिता करनी चाहिए, जब महिलाएं स्वस्थ्य रहेंगी तो भारत स्वस्थ रहेगा। आज श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा अत्यंत सराहनीय कार्य किये जा रहे हैं, भारतीय ज्ञान परम्परा में निहित सभी विज्ञानों (योगविज्ञान, वास्तुविज्ञान, ज्योतिषविज्ञान) के ऊपर शोधकार्य हो रहे हैं। आपके विश्वविद्यालय के छात्र अत्यन्त प्रतिभाशाली हैं जो वर्तमान और भविष्य में भी विश्वभर में भारत का नाम रोशन करेंगे।
मुख्यातिथि, विभागाध्यक्ष चर, समाज शास्त्र विभाग, दी.द.उ.गोरखपुर विश्वविद्यालय, प्रो. राम प्रकाश जी ने अपने उद्बोधन में महत्वपूर्ण 03 पक्ष रखे व्यक्ति, समाज और योग। हमारे सामने ये तीन अवधारणाएं है तीनों ही अवधारणाओं पर व्यक्ति, समाज के लिए योग का क्या योगदान है ? योग व्यक्ति के लिए जहाँ उसकी शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक आवश्यकता की पूर्ति हो साथ ही जब समाज में संतुलित पूर्ति का समन्वय होगा तो समाज में कैसे योगदान कर सकेगा? योगाभ्यास से जो समाज निर्मित होगा वह सामाजिक होगा और सामाजिक सम्बन्धों में सम्मिलित पक्ष एक दूसरे के प्रति जागरूक होते हैं। इस जागरूकता से व्यक्तियों के सम्बन्ध संस्थाओं का रूप लेते हैं और ये संस्थायें हमारी विविध आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए समर्पित रहती हैं तो इन सब में सबसे बड़ा योगदान योग का होगा। योग जोड़ता है स्वयं को स्वयं से, स्वयं को समाज से और इस जोड़ में सम्बन्धों की मधुरता है।
माननीय कुलपति प्रो. मुरलीमनोहर पाठक जी ने सभा को संबोधित करते हुए, अपनी बात "संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्. देवा भागं यथा पूर्वे, सञ्जानाना उपासते" से प्रारम्भ करते हुए 10वें अंतर्राष्ट्रीय योगदिवस की सभी को शुभकामनाएं दी। योग भारत में प्रारम्भ हुआ और विदेशों की यात्रा कर पुनः भारत पहुंचा। भारत में योग वापस लाने के श्रेय योगगुरु बाबाराम देव जी को जाता है और अंतर्राष्ट्रीय फलक पर योग को पुन: प्रतिष्ठित करने का श्रेय हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी जी को जाता है। प्रधानमंत्री जी ने भारतीय योग पद्धति को अंतर्राष्ट्रीय रूप से सार्वजनिक किया आज 180 से अधिक देश योगाभ्यास में रत हैं। विश्व आज चाहे कितना भी विकसित हुआ हो कितना आगे बढ़ा हो लेकिन ज्ञान की कोई किरण अगर इस दुनिया में आई है तो वह हमारे वेदों से आई है। सम्पूर्ण विश्व में विद्या का ज्ञान भारत से ही गया है। आज हम उस विकास की ओर हैं जिससे हमारे वेदों, संहिताओं के सिद्धान्त प्रयोगशाला तक जाएँ क्यूंकि विश्व प्रयोगशाला की भाषा समझता है।
"मन एव मनुष्याणां कारणं बंध मोक्षयोः" मन बन्धन और मोक्ष दोनों का कारण है। चित्तवृत्तियाँ मन के ही अधीन हैं। जिस प्रकार सुमद्र में लहरें चलायमान हैं उसी प्रकार हमारे भीतर भी चित्त वृत्तियाँ चलायमान हैं, उन्हें शान्त करना है यही योग है। मन बड़ा चञ्चल है इसके विषय में अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण से कहते हैं "चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्। तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्" हे कृष्ण ! मन बड़ा ही चञ्चल, प्रमथनशील, दृढ़ और बलवान् है। उसका निग्रह करना मैं वायुकी तरह अत्यन्त कठिन मानता हूँ। भगवान श्रीकृष्ण इसका उत्तर देते हुए कहते हैं "असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलं। अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते" हे महाबाहो ! यह मन बड़ा चञ्चल है और इसका निग्रह करना भी बड़ा कठिन है -- यह तुम्हारा कहना बिलकुल ठीक है। परन्तु हे कुन्तीनन्दन ! अभ्यास और वैराग्यके द्वारा इसका निग्रह किया जाता है। यही योगाभ्यास धीरे धीरे होकर जब परिपक्व हो जायेगा तो हमारा जो चांचल्य है वह स्थिर हो जायेगा। हम अपने को जान जायेंगे। नियमित योग अभ्यास शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्पष्टता और भावनात्मक स्थिरता में सुधार ला सकता है, जिससे यह व्यक्तिगत विकास और सामाजिक कल्याण के लिए एक आवश्यक अभ्यास बन जाता है।
यह समारोह विश्वविद्यालय के स्वर्णजयंती सभागार में आयोजित किया गया। कार्यक्रम का सफल संयोजन डॉ. रमेश कुमार द्वारा किया गया तथा सञ्चालन श्री हर्ष शुक्ल एवं प्रियंका पाण्डेय द्वारा एवं योगाभ्यास श्री विवेक मिश्र द्वारा किया गया।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलसचिव श्री संतोष कुमार श्रीवास्तव, दर्शनशास्त्र पीठ प्रमुख प्रो. ए.एस.अरावमुदन, योगविज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. मार्कण्डेय नाथ तिवारी, प्रो. शिवशङ्कर मिश्र, प्रो. देवेन्द्र प्रसाद मिश्र, प्रो. महानन्द झा, प्रो. रामचन्द्र शर्मा, विश्वविद्यालय के अन्य आचार्य, अधिकारी, कर्मचारी सहित छात्र-छात्राएं उपस्थित हुए।
श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय योग के समग्र लाभों को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है और आने वाले वर्षों में इस परंपरा को जारी रखने की आशा करता है।